اي طوطي عيسي نفس وي بلبل شيرين نوا |
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هين زهره را كاليوه كن زان نغمههاي جان فزا |
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دعوي خوبي كن بيا تا صد عدو و آشنا |
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با چهرهاي چون زعفران با چشم تر آيد گوا |
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غم جمله را نالان كند تا مرد و زن افغان كند |
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كه داد ده ما را ز غم كو گشت در ظلم اژدها |
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غم را بدراني شكم با دورباش زير و بم |
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تا غلغل افتد در عدم از عدل تو اي خوش صدا |
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ساقي تو ما را ياد كن صد خيك را پرباد كن |
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ارواح را فرهاد كن در عشق آن شيرين لقا |
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چون تو سرافيل دلي زنده كن آب و گلي |
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دردم ز راه مقبلي در گوش ما نفخه خدا |
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ما همچو خرمن ريخته گندم به كاه آميخته |
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هين از نسيم باد جان كه را ز گندم كن جدا |
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تا غم به سوي غم رود خرم سوي خرم رود |
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تا گل به سوي گل رود تا دل برآيد بر سما |
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اين دانههاي نازنين محبوس مانده در زمين |
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در گوش يك باران خوش موقوف يك باد صبا |
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تا كار جان چون زر شود با دلبران همبر شود |
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پا بود اكنون سر شود كه بود اكنون كهربا |
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خاموش كن آخر دمي دستور بودي گفتمي |
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سري كه نفكندست كس در گوش اخوان صفا |
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