| رها كن ناز، تا تنها نماني |
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| مكن استيزه، تا عررا نماني |
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| مكن گرگي، مرنجان همرهان را |
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| كه تا چون گرگ در صحرا نماني |
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| دو چشم خويشتن در غيب دردوز |
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| كه تا آنجا روي، اينجا نماني |
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| منه لب بر لب هر بوسه جويي |
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| كه تا ز آن دلبر زيبا نماني |
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| ز دام عشوه پر خود نگهدار |
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| كه تا از اوج و از بالا نماني |
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| كه تا از عشق، مولانا نماني |
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| مكن رخ همچو زر از غصهء سيم |
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| كه تا زين سيم، ز آن سيما نماني |
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| چو تو ملك ابد جويي به همت |
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| ازين نان و ازين شربا نماني |
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| رها كن عربده، خو كن حليمي |
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| كه تا از بزم شاه ما نماني |
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| همي كش سرمهء تعظيم در چشم |
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| پياپي، تا كه نابينا نماني |
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| چو ذره باش پويان سوي خورشيد |
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| كه تا چون خاك، زير پا نماني |
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| چو استاره به بالا شبروي كن |
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| كه تا ز آن ماه بيهمتا نماني |
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| مزن هر كوزه را در خنب صفوت |
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| كه تا از عروةالوثقي نماني |
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